संसार रूपी उल्टे वृक्ष की शाखाओं ब्रह्मा (रजोगुण), विष्णु (सतोगुण), महेश (तमोगुण) के लोक और उनकी व्याख्या

हिंदू दर्शन में संसार को एक उल्टे वृक्ष के रूप में वर्णित किया गया है, जिसकी जड़ें ऊपर (आध्यात्मिक सत्य या परमात्मा) और शाखाएं नीचे (भौतिक संसार) फैली हुई हैं। यह रूपक हमें गहरा संदेश देता है कि जो कुछ हम देखते हैं, वह वास्तविकता का केवल एक हिस्सा है, और इसकी जड़ें उस परम सत्य में छिपी हैं जो हमारी आंखों से परे है। इस वृक्ष की शाखाओं को त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश – के लोकों से जोड़ा जाता है, जो क्रमशः रजोगुण, सतोगुण और तमोगुण का प्रतिनिधित्व करते हैं। आइए इन शाखाओं को समझते हैं।

ब्रह्मा का लोक: रजोगुण की शाखा

ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है। उनका लोक रजोगुण से संचालित है, जो कर्म, गति और सृजन का प्रतीक है। रजोगुण वह शक्ति है जो संसार में गतिविधि और परिवर्तन लाती है। ब्रह्मा का यह लोक उस शाखा की तरह है जो नई पत्तियों और फूलों को जन्म देती है। यहाँ जीवन ऊर्जा से भरा होता है, लेकिन यह स्थायी नहीं होता। जैसे वृक्ष की शाखाएं हवा में हिलती हैं, वैसे ही रजोगुण मन को अस्थिर और सांसारिक इच्छाओं की ओर ले जाता है। ब्रह्मलोक में भले ही सृजन की शक्ति हो, पर यहाँ भी आत्मा पूर्ण शांति नहीं पाती, क्योंकि रजोगुण उसे कर्म के चक्र में बांधे रखता है।

विष्णु का लोक: सतोगुण की शाखा

विष्णु, जो पालनकर्ता हैं, उनका लोक सतोगुण से जुड़ा है। सतोगुण शुद्धता, ज्ञान और संतुलन का प्रतीक है। यह वह शाखा है जो वृक्ष को स्थिरता और सुंदरता देती है। विष्णु का वैकुंठ लोक एक ऐसी जगह है जहाँ आत्माएं सांसारिक दुखों से मुक्त होकर शांति और भक्ति में लीन रहती हैं। यहाँ सतोगुण के प्रभाव से मन निर्मल होता है और सत्य की ओर बढ़ता है। लेकिन फिर भी यह शाखा उस मूल जड़ से अलग है, क्योंकि यहाँ तक पहुंचने वाली आत्माएं अभी भी भौतिक और सूक्ष्म संसार के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त नहीं होतीं।

महेश का लोक: तमोगुण की शाखा

महेश यानी शिव, संहारकर्ता, तमोगुण से संबंधित हैं। तमोगुण अज्ञान, निष्क्रियता और विनाश का प्रतीक है। शिव का कैलाश लोक उस शाखा की तरह है जो वृक्ष के पुराने और अनावश्यक हिस्सों को खत्म करती है। यहाँ संहार का मतलब केवल अंत नहीं, बल्कि नई शुरुआत के लिए जगह बनाना भी है। तमोगुण मन को आलस्य या अंधेरे की ओर ले जा सकता है, लेकिन शिव के लोक में यह शक्ति ध्यान और तप के रूप में परिवर्तित होकर आत्मा को मुक्ति की ओर ले जाती है। कैलाश वह स्थान है जहाँ सांसारिक बंधन टूटते हैं।

उल्टे वृक्ष का रहस्य

यह उल्टा वृक्ष हमें बताता है कि संसार की ये तीन शाखाएं – रजोगुण, सतोगुण और तमोगुण – एक ही वृक्ष का हिस्सा हैं। इनका आधार वह परमात्मा है, जो इन गुणों से परे है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश के लोक भले ही अलग-अलग दिखें, पर वे उस एक सत्य की अभिव्यक्ति मात्र हैं। हमारा लक्ष्य इन शाखाओं में उलझने के बजाय जड़ तक पहुंचना होना चाहिए, जहाँ न सृजन है, न पालन, न संहार – केवल शुद्ध चेतना है।

अंतिम विचार

संसार रूपी यह वृक्ष हमें सोचने पर मजबूर करता है कि हम कहाँ हैं – सृजन की अस्थिरता में, पालन की शांति में, या संहार की गहराई में। हर शाखा हमें कुछ सिखाती है, लेकिन असली मुक्ति तब है जब हम इन गुणों को पार कर उस जड़ तक पहुंचें, जो इस उल्टे वृक्ष का आधार है। क्या आप भी इस यात्रा पर हैं?

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