वेदांत दर्शन और शास्त्रों के माध्यम से जो तत्व ज्ञान प्राप्त होता है, उसे जीवन का आद्यात्मिक सत्य कहा जाता है। अद्यातम तत्व ज्ञान प्रत्येक जीव का सवोत्तम लक्ष्य है। इसी ज्ञान के माध्यम से ही संसार के भवसागर में भटक रही प्रत्येक जीव की आत्मा का कल्याण संभव है। वैसे तो संसार में प्रत्येक जीव कर्म और भोग के चक्कर में उलझा रहता है। माया (प्रक्रति ) के तीन गुण – सतोगुण, रजोगुण, और तमोगुण – जीव की आत्मा को प्रत्येक जुनी में फंसाए रखते हैं। 84 लाख जुनी में मनुष्य , पशु, पक्षी, पेड, देवता, राक्षस, पितर अन्य जीव आदि | सभी अपने-अपने लोक में कर्म और भोगो में लिप्त हैं। हालाँकि मनुष्य भी कर्म और भोगो में उलझा हुआ है, लेकिन मनुष्य जुनी में वह हमारे शास्त्रों के अनुसार इससे पार होकर परमात्मा (मोक्ष) को प्राप्त कर सकता है। अन्य जुनियों में ऐसा नही हो सकता। यदि हम अध्यात्म के तत्व ज्ञान की बात करें, तो हमें अपने शास्त्रों से जीवन में अनेको प्रकार का ज्ञान मिलता है। पवित्र शास्त्र हमें बताते हैं की हम अपने जीवन को कैसे चलाएं, अच्छे कर्म कैसे करें, और किस प्रकार से जीवन व्यतीत करें। इस ज्ञान के माध्यम से मनुष्य का जीवन सरल और सुखमय बन सकता है। दूसरा आत्मतत्व ज्ञान , जो हमें महापुरुषों, संतों और वेदांत दर्शन शास्त्रों से प्राप्त होता है, वह परमात्मा को तत्वरूप में जानने का ज्ञान है। यह ज्ञान यह समझने में मदद करता है कि परमात्मा कोन है? वह कोनसा सा परमात्मा है, जो समय (काल) से बाहर है। जब जीव संसार के भवसागर में भटकता रहता है, तो वह अपने जीवन के अंतिम समय में उस परमात्मा को याद करता हुआ मोक्ष प्राप्त कर सकता है और सतलोक में अपनी आत्मा को आनंदित कर सकता है। प्रत्येक जीव का कर्म और भोगों का चक्कर चलता रहेगा। यह चक्कर कब से चल रहा है और कब तक चलेगा, इसका कोई अनुमान नही है। लेकिन मनुष्य को परमात्मा का आत्मतत्व ज्ञान प्राप्त हो सकता है। यही कारण है कि मनुष्य का जीवन अन्य सभी जीवों की तुलना विशेष है। इस जुनी में केवल मनुष्य को समझ और विवेक है। वेदांत शास्त्रों को पढकर और संतों का संग करके,मनुष्यअपने जीवन को कर्म और भोगों के चक्र से मुक्त कर सकता है। यह एक प्रसिद कहावत है – “संग का रंग”, जो यह बताती है कि संग का प्रभाव प्रत्येक जीव पर होता है। प्रत्येक जुनी में हर जीव कर्म करके अपने जीवन को चलाता है। लेकिन हर जीव को खुदमुखत्मार और मोक्ष का मार्ग नही मिलता । मनुष्य के अलावा, सभी जुनियों में जीव केवल कर्म और भोगों के अनुसार अपना जीवन बिताती रहती हैं। प्रत्येक जीव की आत्मा संसार के भवसागर में उलझी हुई है, और वह तरह-तरह की दुःख और पीडा सहन करती रहती है। जन्मों और जन्मांतरों के चक्कर में वह फंसा रहता है। इसी कारण से 84 लाख जुनियों में जीव की आत्मा समय (काल) की अवधि में लगातार चक्कर लगाती रहती हैं। सभी जीवों को उनका समय पूरा होने पर दूसरे जन्म में आत्मा को शरीर मिलता है। फिर वही कमों का चक्कर और भोगों में आत्मा लिप्त रहती है। यदि जीव मनुष्य जीवन के दोरान अछे कर्म नही करता और परमात्मा का करता, तो उसे अपने जीवन के अंतिम समय के बाद ८४ लाख जुनियों के चक्कर में फंसा रहना पडता है। इसके बाद, दुःख- पीड़ा में आत्मा तरह- तरह जुनियों में जन्म लेकर जन्म लेकर कर्मों के भोग भुगतती रहती है। अध्यात्म, भोतिकता से परे जीवन का अनुभव कराने का मार्ग है | यह व्यक्ति को अपने अस्तित्व के बारे में बताता है और ईश्वरीय आनंद की अनुभूति कराता है |जब व्यक्ति आद्याय्त्मिक ज्ञान प्राप्त करता है, तो उसकी ईष्या, द्वेष, घृणा, और आपसी भेदभाव जैसी भावनाएं समाप्त हो जाती हैं। इसके परिणाम स्वरूप व्यनि को शाश्वत आनंद और शांति प्राप्त होती है। अध्यात्म हमें आत्मज्ञान (तत्वज्ञान) के बारे में बताता है। यह हमें समझने में मदद करता है कि इस संसार से परे परमात्मा का स्थान कहां है, परमात्मा को पाना क्यों जरूरी है, और परमात्मा को कैसे पाया जा सकता है। और संसार से परे कोन है वह परमात्मा जिसे जानकर मनुष्य अपनी आत्मा को उस ईश्वर के समीप पहुंचा सकता है। इसके साथ मोक्ष का स्थान भी स्पष्ट किया जाता है। मोक्ष वह अवस्था है, जहां जीव के सभी बंधन समाप्त हो जाते हैं, और आत्मा परमात्मा में विलीन होकर शाश्वत शांति प्राप्त करती है। भगवद गीता के अनुसार , संसार रूपी वृक्ष का उर्ध्ममूल (ऊपर की जड) वह परम अक्षर ब्रह्म है| जिसे सच्चिदानंद ब्रह्मा, “The Supreme Power of God,” एक ओंकार, इल्लिला और सर्वशक्तिमान के रूप में जाना जाता है। वह परमात्मा सत्पुरुष (सत्) के नाम से भी प्रसिद है। इसके नीचे तना रूप में जो अवस्था है | उसे ‘अक्षर ब्रह्म’, ‘तत्पुरुष’, ‘Truth God’ अल्ला कहा जाता है। इस ब्रह्म का नाम ध्यान (‘तत्’) होता है। वृक्ष के तना अवस्था के नीचे है, उस अवस्था को डारों रूपी अवस्था होती है जिसमे अनेकों छर ब्रह्म (छर पुरुष ) होते है | जिनको सदाशिव , महाविष्णु , निरंजन , ला , God, भी कहते है | ऐसे ब्रह्म का ध्यान ‘ॐ’ होता है डारों अवस्थाओं के नीचे , शाखाओ अवस्थाओ का स्थान होता है | जिनको तीनो बड़े देव’ ब्रह्मा (रजोगुण ), विष्णु (सतोगुण ), महेश ( तमोगुण ) ‘ के रूप में विस्तार है | जिनको इलेक्ट्रोन , प्रोटोन , न्यूट्रॉन भी कहते है | जिनका ध्यान ॐ नम शिवाय , ॐ नमो. भगवते वासुदेवाये नम , ॐ ब्रह्म्ने नम इत्यादी शाखाओं से नीचे अवस्थाएं अनेकों पतों रूप में हैं | जो भोतिक संसार भवसागर कर्म और भोगो के चक्र में उलझे हुए हैं। इनमे छोटे देवताओं जैसे इंद्र, वायु , अनि, जल, ,सूर्य , देवता, और लाखों जुनियों के जीवों के शरीर शामिल हैं। इसी प्रकार, पृथ्वी, सौरमंडल, आकाशगंगा, ब्रह्मांड इत्यादी भी संसार रूपी वृक्ष के पत्तों में समाहित हैं। इन पत्तों में से एक पत्ता इतना विशाल है कि उसमें हमारी पृथ्वी, सौरमंडल, अनेकों आकाशगंगा, और ब्रह्मांड में समाएं हुए हैं। कबीर दास जी का दोहा अक्षर पुरुष…