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अच्छे कर्म

अच्छे कर्म से आप क्या समझते हैं? अच्छे कर्म हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। लेकिन अच्छे कर्म से आप क्या समझते हैं? मेरे विचार से, अच्छे कर्म वे कार्य हैं जो नैतिक रूप से सही, सहायक और सकारात्मक होते हैं। ये कार्य न केवल हमारे जीवन में सुख, शांति और संतुष्टि लाते हैं, बल्कि समाज को भी बेहतर बनाते हैं। इस ब्लॉग में, हम अच्छे कर्म के अर्थ, उनके महत्व और प्रभावों के बारे में बात करेंगे। अच्छे कर्म का अर्थ अच्छे कर्म वे कार्य हैं जो दूसरों की भलाई के लिए किए जाते हैं और जो नैतिक दृष्टिकोण से सही होते हैं। ये हमारे जीवन में सकारात्मकता लाते हैं और हमें बेहतर इंसान बनने में मदद करते हैं। अच्छे कर्म का अर्थ कुछ इस प्रकार है: अच्छे कर्म बड़े कार्यों तक सीमित नहीं हैं। एक छोटी सी मुस्कान, किसी की मदद करना, या एक अच्छा शब्द भी अच्छे कर्म का हिस्सा हो सकता है। अच्छे कर्म का महत्व अच्छे कर्म हमारे जीवन और समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनके कुछ प्रमुख महत्व निम्नलिखित हैं: अच्छे कर्म के प्रभाव अच्छे कर्म हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इनके कुछ प्रभाव इस प्रकार हैं: अच्छे कर्म के उदाहरण यहाँ कुछ आसान उदाहरण दिए गए हैं जो हम अपने दैनिक जीवन में कर सकते हैं: निष्कर्ष अच्छे कर्म हमारे जीवन को सार्थक बनाते हैं। ये न केवल हमें आत्म-संतुष्टि और शांति देते हैं, बल्कि समाज में भी सकारात्मक बदलाव लाते हैं। हमें अपने जीवन में छोटे-छोटे अच्छे कार्य करने की आदत डालनी चाहिए, क्योंकि हर अच्छा कर्म हमारे जीवन को बेहतर बनाने की शक्ति रखता है। तो आज से ही अच्छे कर्म शुरू करें और अपने जीवन को एक नई दिशा दें!

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ईसाईधर्म

ईसाई धर्म कितना पुराना है? ईसाई धर्म का इतिहास लगभग 2000 साल पुराना है। इसकी शुरुआत यीशु मसीह के जीवन और शिक्षाओं से हुई, जिनका जन्म लगभग 4 ईसा पूर्व में माना जाता है। यीशु के समय से लेकर आज तक, यह धर्म कई महत्वपूर्ण चरणों से गुजरा है और विश्व भर में फैल गया है। इसकी उत्पत्ति और विकास ईसाई धर्म के इतिहास की एक अनूठी यात्रा क्या आप जानते हैं कि ईसाई धर्म, जो आज दुनिया के सबसे बड़े धर्मों में से एक है, की शुरुआत रोमन साम्राज्य में एक छोटे से संप्रदाय के रूप में हुई थी? इस ब्लॉग में, हम ईसाई धर्म के इतिहास की एक अनूठी झलक पेश करेंगे, जिसमें इसके उदय से लेकर आधुनिक युग तक की प्रमुख घटनाओं को शामिल किया जाएगा। प्रारंभिक ईसाई धर्म ईसाई धर्म की नींव यीशु मसीह के जीवन और शिक्षाओं पर आधारित है, जिन्हें ईसाई उनके भगवान और उद्धारकर्ता मानते हैं। यीशु के शिष्यों, जिन्हें प्रेरित कहा जाता है, ने उनके संदेश को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक रोचक तथ्य यह है कि संत पॉल, जो पहले ईसाइयों के उत्पीड़क थे, बाद में इसके सबसे बड़े समर्थकों में से एक बन गए। रोमन साम्राज्य में प्रसार शुरुआती ईसाइयों को रोमन साम्राज्य में भारी उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद, धर्म तेजी से फैलता रहा। 313 ईस्वी में, सम्राट कॉन्स्टैंटाइन ने मिलान के आदेश के माध्यम से ईसाई धर्म को वैधता प्रदान की, जिससे इसका प्रसार और भी बढ़ गया। इस अवधि में, रोमन कैटाकॉम्ब्स में पाए गए चित्र शुरुआती ईसाइयों की गहरी आस्था को दर्शाते हैं। मध्य युग मध्य युग में, ईसाई चर्च यूरोप में एक प्रमुख शक्ति बन गया। इस दौरान, क्रूसेड्स जैसे धार्मिक युद्धों का आयोजन किया गया, और मठवासी परंपरा ने शिक्षा और संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। क्या आपने सुना है कि पवित्र ग्रेल की किंवदंती इसी समय की देन है, जो ईसाई मिथकों में आज भी लोकप्रिय है? प्रोटेस्टेंट सुधार 16वीं शताब्दी में, मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च के खिलाफ 95 थीसिस प्रकाशित की, जिससे प्रोटेस्टेंट सुधार की शुरुआत हुई। उन्होंने लिखा, “जब सिक्का तिजोरी में गिरता है, तो आत्मा स्वर्ग की ओर उड़ती है,” जो उस समय की माफी की बिक्री की प्रथा पर कटाक्ष था। इस घटना ने ईसाई धर्म में एक बड़ा विभाजन पैदा किया और कई नए संप्रदायों का उदय हुआ। आधुनिक युग आधुनिक काल में, ईसाई धर्म का प्रसार अफ्रीका और एशिया जैसे क्षेत्रों में तेजी से हुआ है। साथ ही, विभिन्न ईसाई संप्रदायों के बीच एकता के प्रयास भी किए जा रहे हैं, जिसे इक्यूमेनिकल मूवमेंट के रूप में जाना जाता है। एक उल्लेखनीय उदाहरण है अमेरिका का नागरिक अधिकार आंदोलन, जहाँ मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने ईसाई सिद्धांतों के आधार पर सामाजिक परिवर्तन की वकालत की। निष्कर्ष ईसाई धर्म का इतिहास संघर्ष, परिवर्तन और विकास की कहानी है। एक छोटे से संप्रदाय से लेकर वैश्विक धर्म तक की इस यात्रा में, ईसाई धर्म ने मानव इतिहास पर गहरा प्रभाव डाला है। इसकी शिक्षाएँ और मूल्य आज भी लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं, और इसका प्रभाव आने वाले समय में भी जारी रहेगा।

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ध्यान योग

ध्यान योग: मन की शांति और आत्म–साक्षात्कार का मार्ग परिचय ध्यान योग भारतीय संस्कृति और दर्शन का एक अभिन्न अंग है, जो मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करने की कला है। यह योग का सातवां अंग है, जैसा कि महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र में वर्णित किया है। ध्यान योग का उद्देश्य मन को एकाग्र करना, मानसिक शांति प्राप्त करना और आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ना है। यह न केवल तनाव और चिंता को कम करता है, बल्कि व्यक्ति को अपने भीतर की दिव्य चेतना से जोड़ता है। ध्यान योग क्या है? ध्यान योग का अर्थ है मन को किसी एक बिंदु, विचार या विषय पर केंद्रित करना। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें साधक अपने विचारों को नियंत्रित करता है और बाहरी दुनिया के शोर से मुक्त होकर अपने भीतर की शांति को अनुभव करता है। योगसूत्र के अनुसार, ध्यान वह अवस्था है जिसमें चित्त एक ही स्थान पर स्थिर हो जाता है और बाहरी विकारों से अप्रभावित रहता है। ध्यान योग के दो प्रमुख रूप हैं: ध्यान योग का महत्व ध्यान योग का अभ्यास जीवन में कई तरह से लाभकारी है। यह न केवल मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, बल्कि आध्यात्मिक विकास में भी सहायक है। कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं: ध्यान योग की प्रक्रिया ध्यान योग का अभ्यास शुरू करने के लिए कुछ सरल चरणों का पालन किया जा सकता है: ध्यान योग की चुनौतियां और समाधान ध्यान योग शुरू करने वाले साधकों को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसे: ध्यान योग और भगवद्गीता श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने ध्यान योग की महत्ता और विधि को विस्तार से बताया है। अध्याय 6 (ध्यान योग) में वे कहते हैं: “मन को शांत और स्थिर करने के लिए एकांत स्थान पर, स्वच्छ आसन पर बैठकर साधक को अपने विचारों को नियंत्रित करना चाहिए।” श्रीकृष्ण के अनुसार, ध्यान योग के लिए संयम, सात्विक भोजन और नियमित अभ्यास आवश्यक है। यह साधक को इंद्रियों पर नियंत्रण और आत्मा के साथ एकता का अनुभव कराता है। आधुनिक जीवन में ध्यान योग आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में ध्यान योग का महत्व और भी बढ़ गया है। तनाव, अवसाद और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के दौर में ध्यान योग एक प्रभावी उपाय है। यह न केवल व्यक्तिगत विकास में मदद करता है, बल्कि सामाजिक सद्भाव और वैश्विक शांति को भी बढ़ावा देता है। विश्व योग दिवस (21 जून) जैसे अवसरों पर ध्यान योग को वैश्विक स्तर पर अपनाया जा रहा है। निष्कर्ष ध्यान योग केवल एक अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। यह हमें अपने भीतर की असीम शांति और आनंद को खोजने का मार्ग दिखाता है। नियमित अभ्यास, धैर्य और समर्पण के साथ कोई भी व्यक्ति ध्यान योग के लाभों को प्राप्त कर सकता है। जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने कहा था, “ध्यान वह प्रक्रिया है जो हमें अपनी आत्मा की गहराइयों में ले जाती है।” तो आइए, इस यात्रा को शुरू करें और अपने जीवन को शांति और समृद्धि से भर दें।

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तुलसीदास जी की शिक्षाएँ

तुलसीदास जी की शिक्षाएँ: जीवन का सरल दर्शन गोस्वामी तुलसीदास – एक नाम जो भक्ति, साहित्य और जीवन दर्शन का प्रतीक है। उनकी रचनाएँ, खासकर रामचरितमानस, न केवल भगवान राम की गाथा सुनाती हैं, बल्कि हमें जीने की कला भी सिखाती हैं। आइए, उनकी शिक्षाओं को एक अनोखे नज़रिए से देखें और समझें कि वे आज भी हमारे लिए कितने प्रासंगिक हैं। भक्ति में सरलता तुलसीदास जी ने सिखाया कि ईश्वर तक पहुँचने के लिए बड़े-बड़े तप या जटिल अनुष्ठानों की जरूरत नहीं। उनकी भक्ति का आधार है – प्रेम और समर्पण। वे कहते हैं, “रामहि केवल प्रेम पियारा, जानि लेउ जो जाननहारा” – अर्थात् राम को बस प्रेम चाहिए। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में यह संदेश हमें याद दिलाता है कि सच्ची शांति सादगी में छिपी है। कर्म और करुणा का मेल रामचरितमानस में तुलसीदास जी बार-बार कर्म की महत्ता बताते हैं, लेकिन साथ ही करुणा को भी जोड़ते हैं। जैसे जब राम ने रावण का अंत किया, तो वह क्रोध से नहीं, बल्कि धर्म की स्थापना के लिए था। यह हमें सिखाता है कि अपने कर्तव्य निभाएँ, पर दूसरों के प्रति दया न भूलें। आज के प्रतिस्पर्धी युग में यह संतुलन कितना जरूरी है! नारी शक्ति का सम्मान तुलसीदास जी ने सीता माता के चरित्र के माध्यम से नारी की गरिमा को ऊँचा उठाया। सीता का धैर्य, उनकी शक्ति और समर्पण एक अनोखा सबक है। वे कहते हैं कि नारी सिर्फ त्याग की मूर्ति नहीं, बल्कि साहस और बुद्धि की प्रतीक भी है। यह दृष्टिकोण हमें आधुनिक समाज में लैंगिक समानता की ओर सोचने को प्रेरित करता है। जीवन का अनोखा सूत्र तुलसीदास जी की शिक्षाओं का सार एक पंक्ति में छिपा है – “तुलसी भरोसे राम के, निर्भय होके सोए”। अर्थात्, ईश्वर पर भरोसा रखो और डर को छोड़ दो। यह विश्वास हमें न केवल आध्यात्मिक बल देता है, बल्कि रोज़मर्रा की चिंताओं से भी मुक्ति दिलाता है। आज के लिए प्रेरणा तुलसीदास जी का दर्शन हमें सिखाता है कि जीवन को जटिल बनाने की बजाय उसे प्रेम, विश्वास और कर्म से सरल बनाएँ। उनकी हर चौपाई एक दर्पण है, जो हमें अपने भीतर झाँकने और बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देती है। तो क्यों न आज हम उनकी एक पंक्ति को अपने जीवन में उतारें और देखें कि कितना सुकून मिलता है?

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ब्रह्मांड (Universe)

जैसे साइंस ने हमारे सौरमंडल, पृथ्वी, आकाशगंगा और सुपर कलस्टर इत्यादि थे आम तौर पर गुरुत्वाकषर्ण  से बंधे होते है। कुछ आकाशगंगा समूह 200 मिलियन प्रकाश वर्ष तक फैले होते है। यदि हम पीपल रूपी उल्टे वृक्ष के मैप के अनुसार सभी पत्तों में हमारा भी एक पत्ता रूपी ब्रह्मांड वैसे तो अनेकों पत्ते और अनेको ब्रह्मांड है। जिसकी अपनी समय अवधि होती है। जैसे एक समय के बाद पतझड़ में वृक्षों के पत्ते झड़ जाते है। वैसे ही ब्रह्मांड रूपी पत्ता संसार रूपी वृक्ष से नष्ट हो जाता है। फिर दूसरा ब्रह्मांड (पत्ता) का विस्तार होता है। जिसमे दुबारा से ग्रह, सौरमंडल, आकाशगंगा, आकाशगंगा समूह बनते है और जीवन पनपता है। फिर यू  ही जीवन चक्कर चलता रहता है। एक अनंत और रहस्यमय  विस्तार ब्रह्मांड हमारे अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसके बारे में जानना हमारे लिए बहुत रोचक हो सकता है। ब्रह्मांड का रहस्यमय  विस्तार है। जिसके अरबो गलैक्सिया, तारे और ग्रह है। इस लेख में हम ब्रह्मांड के बारे में कुछ रोचक तथ्यों और अवधारणाओं पर चर्चा करेंगे। ब्रह्मांड का आकार और विस्तार ब्रह्मांड के आकार और विस्तार एक बहुत ही जटिल और रहस्यमय विषय है। वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार ब्रह्मांड का व्यास  लगभग ९३ अरब  प्रकाश  वर्ष  है। और इसका आयतन लगभग 4. 2*10 ^ 80 मीट ^ 3 है। लेकिन यह आकार और विस्तार अभी भी एक अनुमान है। और वैज्ञानिकों को अभी भी इसके बारे में बहुत कुछ सीखना है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बहुत रोचक और जटिल विषय है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ब्रह्मांड लगभग 13.8 अरब वर्ष पूर्व एक महाकाय विस्फोट से उत्पन्न  हुआ था। जिसे बिग बैंग भी कहा जाता है इस विस्फोट से पहले ब्रह्मांड एक बहुत ही गर्म और घने अवस्था में था। और इसके बाद ही है विस्तारित होना शुरू हुआ। ब्रह्मांड का रहस्य ब्रह्मांड में बहुत सारे रहस्य है। जो अभी भी वैज्ञानिकों को आकर्षित करते हैं। इनमें कुछ प्रमुख रहस्य है: डार्क मैटर : एक प्रकार का पदार्थ है। जो ब्रह्मांड में व्यापत है लेकिन इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। डार्क एनर्जी: यह एक प्रकार की ऊर्जा है। जो ब्रह्मांड के विस्तार को बढ़ावा देती है। लेकिन इसका भी कोई प्रत्याशी प्रमाण नहीं है। ब्लैक होल्स : यह एक प्रकार के खगोलिय पिंड है। जो इतने घने होते है। कि उनके गुरुत्वाकपर्ण  से कुछ भी बच नहीं सकता है। ब्रह्मांड में हमारी पृथ्वी, अन्य ग्रह और उपग्रह है। जो एक दूसरे के गुरुत्वाकपर्ण  बल से ठीके हुए है। यदि हम अपने पृथ्वी के विस्तार की बात करें तो यह भूमधय रेखा के चारों ओर उसका विस्तार 40 हजार 75 किलोमीटर तक फैला है। हमारी पृथ्वी से चांद की दूरी 3 लाख  84 हजार किलोमीटर बताई गई है। जो हमारी पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता हुआ। पूरे सौरमंडल के साथ गैलेक्सी के चारों और चक्कर लगाता है। हमारे तोर (सूर्य) से हमारे पृथ्वी की दूरी 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर है। पृथ्वी हमारे तारो के चारों ओर चक्कर लगाकर गैलेक्सी (आकाशगंगा) में घूम रही है। हमारे सौरमंडल में अनेकों ग्रह है जो सूर्य (तारो) के साथ आकाशगंगा के ब्लैक होल का चक्कर लगा रहे है। यदि हम अपने सौरमंडल और उसमें अनेकों ग्रहों की बात करे तो। हमारा सौरमंडल विज्ञान के अनुसार एक लाइट ईयर बड़ा है। पूरे लाइट ईयर में साइंस कहती है। करीब 95 खराब किलोमीटर होते है। यानि एक वर्ष में लाइट कितनी  दूरी तय करती है। उसको लाइट ईयर कहते हैं एक लाइट ईयर में प्रकाश  9.46 बिलियन किलोमीटर की दूरी तय करती है 94.60 या  95 खराब किलोमीटर भी कह सकते है। हमारे पृथ्वी सूर्य के चारो ओर 30 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से चक्कर लगाती है। और अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक चक्कर पूरा करती है। पृथ्वी अन्य ग्रह और सूर्य, हमारी आकाशगंगा के केंद्र के चारों और लगभग 200 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार में परिक्रमा कर रहे है। जिसमें अन्य चंद्रमाओं और शुद्ध ग्रह के साथ मिल्की वे आकाशगंगा के केंद्र का चक्कर लगाता है। इसके बाद हमारी मंदाकिनी आकाशगंगा अपने समूह की आकाशगंगा के साथ ब्रह्मांड में चक्कर लगाती रहती है। इसका समय बहुत लंबा है जो अरबो-खरबो वर्ष है। और रफ्तार भी बहुत ज्यादा है। निष्कर्ष :- अब निष्कर्ष की बात कर तो हमारे जो वेद शास्त्रों ने जो संसार रूप उल्टे वृक्ष का नक्शा (मैप) बताया है। उसके एक पत्ते में इतना मैटर है जो युगो-युगो से चलाता जा रहा है। ब्रह्मांड के रहस्यो को समझने से हमें अपने अस्तित्व के बारे में अधिक जानने में मदद मिल सकती है। हमारे सारे ग्रह, सौरमंडल, आकाशगंगा समूह को ग्रन्थों-शास्त्रों ने संसार रूपी वृक्ष के एक पत्ता रूप बताया है। साइंस के अनुसार भी मल्टीयर यूनिवर्स है। जो अनेकों पत्तो रूपी ब्रह्मांड के विस्तार के रूप में वर्णन किया गया है।

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अध्यात्म तत्व ज्ञान क्या है?

वेदांत दर्शन  और शास्त्रों के माध्यम से जो तत्व ज्ञान  प्राप्त होता है, उसे जीवन का आद्यात्मिक सत्य   कहा जाता है। अद्यातम तत्व ज्ञान  प्रत्येक जीव का सवोत्तम लक्ष्य है। इसी ज्ञान  के माध्यम से ही संसार के भवसागर में भटक रही प्रत्येक जीव की आत्मा का कल्याण संभव है। वैसे तो संसार में प्रत्येक जीव कर्म  और भोग के चक्कर में उलझा रहता है। माया (प्रक्रति ) के तीन गुण – सतोगुण, रजोगुण, और तमोगुण – जीव की आत्मा को प्रत्येक जुनी  में फंसाए रखते हैं। 84 लाख जुनी में मनुष्य , पशु, पक्षी, पेड, देवता, राक्षस, पितर अन्य जीव आदि | सभी अपने-अपने लोक में कर्म  और भोगो  में लिप्त  हैं। हालाँकि मनुष्य  भी कर्म  और भोगो  में उलझा हुआ है, लेकिन मनुष्य जुनी में  वह हमारे शास्त्रों के अनुसार  इससे  पार होकर परमात्मा (मोक्ष) को प्राप्त कर सकता है। अन्य जुनियों में ऐसा  नही  हो सकता। यदि  हम अध्यात्म के तत्व ज्ञान  की बात करें, तो हमें अपने  शास्त्रों से जीवन  में अनेको  प्रकार का ज्ञान मिलता  है। पवित्र  शास्त्र हमें  बताते हैं की  हम अपने  जीवन को कैसे चलाएं, अच्छे कर्म  कैसे करें, और किस  प्रकार से जीवन व्यतीत करें। इस  ज्ञान  के माध्यम से मनुष्य  का जीवन  सरल और सुखमय  बन  सकता है। दूसरा आत्मतत्व ज्ञान , जो हमें महापुरुषों, संतों और वेदांत दर्शन  शास्त्रों से प्राप्त होता है, वह परमात्मा को तत्वरूप में जानने का ज्ञान  है। यह ज्ञान यह  समझने में मदद करता है कि  परमात्मा कोन  है? वह कोनसा  सा परमात्मा है, जो समय (काल) से बाहर है। जब जीव संसार के भवसागर में भटकता रहता  है, तो वह अपने जीवन के  अंतिम समय  में उस परमात्मा को याद  करता हुआ मोक्ष प्राप्त कर सकता है और सतलोक में अपनी  आत्मा को आनंदित  कर सकता है। प्रत्येक जीव का कर्म  और भोगों का चक्कर चलता रहेगा। यह  चक्कर कब से चल रहा है और कब तक चलेगा, इसका कोई अनुमान नही है। लेकिन मनुष्य  को परमात्मा का आत्मतत्व ज्ञान प्राप्त हो सकता है। यही  कारण है कि मनुष्य का जीवन  अन्य सभी जीवों की तुलना विशेष  है। इस जुनी में केवल मनुष्य को समझ और विवेक  है। वेदांत शास्त्रों को पढकर और संतों का संग करके,मनुष्यअपने  जीवन को कर्म  और भोगों के चक्र से मुक्त कर सकता है। यह  एक प्रसिद  कहावत है – “संग का रंग”, जो यह  बताती है कि संग का प्रभाव प्रत्येक जीव पर होता है। प्रत्येक जुनी में हर जीव  कर्म  करके अपने  जीवन  को चलाता है। लेकिन  हर जीव को खुदमुखत्मार और मोक्ष का मार्ग नही  मिलता । मनुष्य  के अलावा, सभी जुनियों में जीव  केवल कर्म  और भोगों के अनुसार अपना जीवन बिताती  रहती हैं। प्रत्येक जीव की आत्मा संसार के भवसागर में उलझी हुई है, और वह तरह-तरह की दुःख  और पीडा सहन करती रहती  है। जन्मों और जन्मांतरों के चक्कर में वह फंसा रहता है। इसी कारण से 84 लाख जुनियों में जीव की आत्मा समय  (काल) की अवधि में लगातार चक्कर लगाती रहती हैं। सभी जीवों को उनका समय  पूरा होने पर  दूसरे जन्म में आत्मा को शरीर मिलता  है। फिर  वही कमों का चक्कर और  भोगों में आत्मा लिप्त  रहती है। यदि जीव मनुष्य जीवन के दोरान अछे कर्म नही  करता और परमात्मा का  करता, तो उसे अपने जीवन के अंतिम समय के बाद ८४ लाख जुनियों के चक्कर में फंसा रहना पडता है। इसके बाद, दुःख- पीड़ा में आत्मा तरह- तरह जुनियों में जन्म लेकर जन्म लेकर कर्मों  के भोग भुगतती रहती है। अध्यात्म, भोतिकता से परे जीवन का अनुभव कराने का मार्ग है | यह व्यक्ति को अपने अस्तित्व के बारे में बताता है  और ईश्वरीय आनंद की अनुभूति कराता है |जब व्यक्ति आद्याय्त्मिक ज्ञान प्राप्त करता है, तो उसकी ईष्या, द्वेष, घृणा, और आपसी भेदभाव जैसी भावनाएं समाप्त हो जाती हैं। इसके परिणाम स्वरूप व्यनि को शाश्वत आनंद और शांति प्राप्त होती है। अध्यात्म हमें आत्मज्ञान (तत्वज्ञान) के बारे में बताता है। यह हमें  समझने में मदद करता है कि इस संसार से परे परमात्मा का स्थान कहां है, परमात्मा को पाना क्यों जरूरी है, और परमात्मा को कैसे पाया जा सकता है। और संसार से परे कोन है वह परमात्मा जिसे जानकर मनुष्य अपनी आत्मा को उस  ईश्वर के समीप पहुंचा सकता है। इसके साथ मोक्ष का स्थान भी स्पष्ट किया जाता है। मोक्ष वह अवस्था है, जहां जीव के सभी बंधन समाप्त हो जाते हैं, और आत्मा परमात्मा में विलीन होकर शाश्वत शांति प्राप्त करती है। भगवद गीता के अनुसार , संसार रूपी वृक्ष का उर्ध्ममूल (ऊपर की जड) वह परम अक्षर ब्रह्म है| जिसे सच्चिदानंद  ब्रह्मा, “The Supreme Power of God,” एक ओंकार, इल्लिला  और सर्वशक्तिमान के रूप में जाना जाता है। वह परमात्मा सत्पुरुष (सत्) के नाम से भी प्रसिद है। इसके नीचे तना रूप में जो अवस्था है | उसे ‘अक्षर ब्रह्म’, ‘तत्पुरुष’, ‘Truth God’ अल्ला  कहा जाता है। इस ब्रह्म का नाम ध्यान  (‘तत्’) होता  है। वृक्ष के तना अवस्था के नीचे  है, उस अवस्था को   डारों रूपी अवस्था होती है जिसमे अनेकों छर ब्रह्म (छर पुरुष ) होते है | जिनको सदाशिव , महाविष्णु , निरंजन , ला , God, भी कहते है | ऐसे ब्रह्म का ध्यान ‘ॐ’ होता है डारों अवस्थाओं के नीचे , शाखाओ अवस्थाओ  का स्थान  होता है |  जिनको तीनो बड़े देव’ ब्रह्मा (रजोगुण ), विष्णु (सतोगुण ), महेश ( तमोगुण ) ‘ के रूप में विस्तार है  | जिनको  इलेक्ट्रोन , प्रोटोन , न्यूट्रॉन    भी कहते है | जिनका ध्यान ॐ नम शिवाय , ॐ नमो. भगवते वासुदेवाये नम , ॐ ब्रह्म्ने नम  इत्यादी                                                                                                                                          शाखाओं से  नीचे  अवस्थाएं  अनेकों  पतों रूप में  हैं |  जो भोतिक संसार भवसागर  कर्म  और भोगो  के चक्र में उलझे हुए हैं। इनमे  छोटे देवताओं जैसे इंद्र, वायु , अनि, जल, ,सूर्य , देवता, और  लाखों  जुनियों के जीवों के शरीर शामिल  हैं। इसी प्रकार, पृथ्वी, सौरमंडल, आकाशगंगा, ब्रह्मांड इत्यादी  भी संसार रूपी वृक्ष के पत्तों में समाहित  हैं। इन पत्तों में से एक पत्ता इतना विशाल  है कि उसमें हमारी पृथ्वी, सौरमंडल, अनेकों आकाशगंगा, और ब्रह्मांड में  समाएं हुए  हैं। कबीर दास जी का दोहा अक्षर पुरुष…

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