
सिखधर्म: उद्भव, इतिहास और इसकी शिक्षाएँ
सिख धर्म, मानवता, समानता और एकेश्वरवाद पर आधारित एक विश्व धर्म, 15वीं शताब्दी में भारत के पंजाब क्षेत्र में शुरू हुआ। इसकी नींव गुरु नानक देव जी ने रखी, जिन्होंने सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक कर्मकांडों के खिलाफ एक नया आध्यात्मिक मार्ग दिखाया। सिख धर्म केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है, जो सत्य, मेहनत, और सेवा पर जोर देता है। सिख धर्म की स्थापना 1469 में गुरु नानक देव जी के जन्म के साथ शुरू हुई। वे तलवंडी (अब ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में एक सामान्य परिवार में पैदा हुए। उस समय भारत में जातिवाद, धार्मिक अंधविश्वास, और सामाजिक असमानता गहरी थी। गुरु नानक ने इनका विरोध किया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो सभी को एक समान मानता था। उनकी शिक्षाएँ सरल थीं, लेकिन गहरी: गुरु नानक ने चार लंबी यात्राएँ (उदासियाँ) कीं, जिनमें उन्होंने भारत, श्रीलंका, तिब्बत, मध्य एशिया, और अरब देशों तक अपनी शिक्षाएँ पहुँचाई। उन्होंने हिंदू, मुस्लिम, और अन्य समुदायों के बीच एकता का संदेश दिया। उनकी मृत्यु 1539 में हुई, लेकिन उनकी शिक्षाएँ उनके उत्तराधिकारी गुरुओं के माध्यम से आगे बढ़ीं। दस गुरुओं का योगदान सिख धर्म का विकास दस गुरुओं के मार्गदर्शन में हुआ, जिन्होंने 1469 से 1708 तक सिख समुदाय को आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से मजबूत किया। यहाँ प्रत्येक गुरु के प्रमुख योगदान का संक्षिप्त विवरण है: खालसा पंथ: सिख पहचान की स्थापना 1699 में, गुरु गोबिंद सिंह जी ने वैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की। यह सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। खालसा का अर्थ है “शुद्ध” या “स्वतंत्र”। गुरु जी ने पांच प्यारों (पंज प्यारे) को चुना और उन्हें अमृत (खंडे बटे दा अमृत) देकर खालसा बनाया। खालसा सिखों को निम्नलिखित पांच ककार धारण करने का आदेश दिया गया: खालसा ने सिखों को एक सैन्य और आध्यात्मिक पहचान दी, जो अन्याय के खिलाफ लड़ने और धर्म की रक्षा करने के लिए तैयार थी। गुरु ग्रंथ साहिब: शाश्वत गुरु 1708 में, गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का अंतिम गुरु घोषित किया। यह पवित्र ग्रंथ सिख धर्म का केंद्रीय आधार है, जिसमें गुरु नानक और अन्य गुरुओं की बानी, साथ ही विभिन्न संतों (जैसे कबीर, रविदास, और फरीद) की रचनाएँ शामिल हैं। गुरु ग्रंथ साहिब केवल एक किताब नहीं, बल्कि सिखों के लिए जीवंत मार्गदर्शक है, जो जीवन के हर पहलू में प्रेरणा देता है। सिख इतिहास: संघर्ष और समृद्धि 18वीं शताब्दी में, सिखों को मुगल शासकों और अफगान आक्रमणकारियों से भारी उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। गुरु गोबिंद सिंह जी के पुत्रों और कई सिखों ने धर्म और स्वतंत्रता के लिए बलिदान दिया। फिर भी, सिखों ने अपनी एकता और साहस से मिसल (सिख सैन्य समूह) बनाए और पंजाब में अपनी ताकत बढ़ाई।19वीं शताब्दी में, महाराजा रणजीत सिंहने सिख साम्राज्य की स्थापना की (1799-1839), जो पंजाब, कश्मीर, और उत्तर-पश्चिमी भारत तक फैला। यह सिख इतिहास का स्वर्ण युग था, जिसमें कला, संस्कृति, और धर्म का विकास हुआ।1849 में, अंग्रेजों ने सिख साम्राज्य को अपने अधीन कर लिया, लेकिन सिखों ने अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखा। 20वीं शताब्दी में, सिखों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आधुनिक सिख धर्म आज विश्व भर में लगभग 3 करोड़ सिख हैं, जो भारत, कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में रहते हैं। सिख धर्म की शिक्षाएँ—समानता, सेवा, और सत्य—आज भी प्रासंगिक हैं।गुरुद्वारेसिख समुदाय के केंद्र हैं, जहाँलंगरसभी के लिए मुफ्त भोजन के रूप में सामाजिक समानता का प्रतीक है। सिख समुदाय ने शिक्षा, चिकित्सा, और आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया है। सिख धर्म की प्रमुख शिक्षाएँ सिख धर्म की कुछ मुख्य शिक्षाएँ हैं: निष्कर्ष सिख धर्म की शुरुआत 15वीं शताब्दी में गुरु नानक देव जी से हुई, और यह दस गुरुओं के मार्गदर्शन में विकसित हुआ। गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में इसका शाश्वत मार्गदर्शन आज भी सिखों और मानवता को प्रेरित करता है।