छर पुरुष (छर ब्रह्म)

उल्टे संसार रूपी वृक्ष में छर ब्रह्म, निरंजन, महाविष्णु, सदाशिव जैसे इत्यादि नामों से जाने वाले ब्रह्म के लोक के बारे में एक विस्तृत जानकारी लेंगे। उल्टे संसार रूपी वृक्ष और निरंजन या छर ब्रह्म के लोक का रहस्यमयी विवरण हमारे प्राचीन शास्त्रों और दार्शनिक ग्रंथों में संसार को एक उल्टे वृक्ष के रूप में वर्णित किया गया है। इसकी जड़ें ऊपर आकाश की ओर और शाखाएँ नीचे धरती की ओर फैली हुई हैं। यह रूपक हमें जीवन, सृष्टि और ब्रह्मांड के गहरे रहस्यों को समझने का एक अनूठा दृष्टिकोण देता है। इस वृक्ष की शाखाओं के रूप में छर पुरुष या छर ब्रह्म का उल्लेख मिलता है, जिन्हें निरंजन, महाविष्णु और सदाशिव जैसे विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। इनका मंत्र “ॐ” है, जो अपने ब्रह्मांड और अन्य ब्रह्मांडों की मूल ध्वनि और सत्ता का प्रतीक माना जाता है। आइए, इनके लोक और उनके महत्व को विस्तार से समझें। उल्टे वृक्ष का दार्शनिक अर्थ शास्त्रों में श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 15, श्लोक 1-3) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह संसार एक अश्वत्थ वृक्ष के समान है, जिसकी जड़ें ऊपर और शाखाएँ नीचे हैं। इसकी जड़ें ब्रह्मांड की मूल सत्ता या परमात्मा से जुड़ी हैं, जबकि शाखाएँ माया, प्रकृति और जीवात्माओं के रूप में नीचे फैलती हैं। इस वृक्ष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा वह सत्ता है, जिसे छर पुरुष या छर ब्रह्म कहा जाता है। यह वह प्राणसत्ता है जो सृष्टि के संचालन और संतुलन का आधार है। निरंजन, महाविष्णु, और सदाशिव: एक ही सत्ता के विविध नाम निरंजन का अर्थ है “जो रंजन (दाग) से मुक्त हो।” महाविष्णु सृष्टि के पालक और अंत में जल पर स्थित रहने वाले परम पुरुष के रूप में जाने जाते हैं, जिनसे कई ब्रह्मांडों की उत्पत्ति होती है। सदाशिव ध्यान और तप की गहराई में निवास करते हैं। ये सभी नाम एक ही परम सत्ता के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं, और इनका मूल मंत्र “ॐ” है। यह ध्वनि सृष्टि की प्रथम कंपन है, जो हर जीव और कण में व्याप्त है। निरंजन का लोक: शून्य और अनंत का संगम निरंजन का लोक एक ऐसी अवस्था है, जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों से परे है। स्थान: यह लोक चौदह भुवनों (चौदह लोकों) से भी ऊपर माना जाता है। यहाँ तक पहुँचने के लिए जीव को अपने कर्मों, इंद्रियों और मन को पूर्णतः नियंत्रित करना पड़ता है। प्रकृति: यहाँ न ध्वनि है, न रूप, न रंग। यह शून्यता का वह स्वरूप है जो अनंत से जुड़ा हुआ है। प्रवेश: संत कबीर जैसे महान दार्शनिकों ने इसे “सहज योग” और “सुरति-शब्द योग” के माध्यम से प्राप्त करने की बात कही है। “ॐ” का जाप और ध्यान इस लोक की ओर ले जाने वाला मार्ग है। प्रतीक: कमल, शंख, चक्र और गदा महाविष्णु के इस लोक के प्रतीक हैं। “ॐ” मंत्र का महत्व “ॐ” केवल एक शब्द नहीं, बल्कि एक संपूर्ण ब्रह्मांडीय ऊर्जा है। यह तीन ध्वनियों—अ, उ, म—का संयोजन है, जो सृजन (ब्रह्मा), पालन (विष्णु) और संहार (शिव) का प्रतीक है। इस मंत्र का जाप करने से मनुष्य अपने भीतर की सत्ता को जागृत कर इन लोकों से जुड़ सकता है। निष्कर्ष उल्टे संसार रूपी वृक्ष की यह शाखाएँ—निरंजन, महाविष्णु, सदाशिव—हमें सिखाती हैं कि सृष्टि का हर पहलू एक ही परम सत्ता का अंग है। इनके लोक हमें उस अनंतता की याद दिलाते हैं, जो हमारे भीतर और बाहर दोनों में विद्यमान है। “ॐ” का जाप और आत्मचिंतन हमें इन लोकों तक ले जा सकता है, जिससे शाश्वतता का आभास होता है।

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अक्षर ब्रह्म

उल्टे संसार रूपी वृक्ष का रहस्य: अक्षर पुरुष और उनके लोक की पूरी जानकारी प्रस्तावना भारतीय दर्शन और अध्यात्म में “संसार रूपी वृक्ष” की अवधारणा बहुत गहरी और प्रतीकात्मक है। भगवद्गीता के 15वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने इस संसार को एक “उल्टा वृक्ष” (अश्वत्थ वृक्ष) के रूप में वर्णित किया है। इसका तना, जड़ें, शाखाएँ और पत्तियाँ हमारे जीवन और ब्रह्मांड की संरचना को दर्शाते हैं। इस संदर्भ में “अक्षर पुरुष” एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में उभरता है। आइए, इस उल्टे वृक्ष और अक्षर पुरुष के लोक के बारे में विस्तार से जानते हैं। उल्टा वृक्ष क्या है? भगवद्गीता (15.1-3) में कहा गया है: “ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्। छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्॥” अर्थात, इस संसार रूपी वृक्ष की जड़ें ऊपर (आध्यात्मिक क्षेत्र या परमात्मा) की ओर हैं, और शाखाएँ नीचे (भौतिक संसार) की ओर फैली हुई हैं। इसे “अश्वत्थ वृक्ष” कहा जाता है, जो नश्वर होने के बावजूद अविनाशी प्रतीत होता है। इसकी पत्तियाँ वेदों के छंदों के समान हैं, और जो इस वृक्ष को समझ लेता है, वही सच्चा ज्ञानी है। जड़ें: ये परमात्मा या ब्रह्म को दर्शाती हैं, जो इस वृक्ष का आधार हैं। तना: यह “अक्षर पुरुष” को संकेत करता है, जो जड़ों और शाखाओं के बीच एक सेतु की तरह है। शाखाएँ: ये भौतिक संसार, तीन गुणों (सत, रज, तम) और कर्मफल के विस्तार को दर्शाती हैं। यह वृक्ष उल्टा इसलिए कहा जाता है क्योंकि सामान्य वृक्ष की जड़ें नीचे और शाखाएँ ऊपर होती हैं, लेकिन यहाँ आध्यात्मिक स्रोत ऊपर है और भौतिक संसार नीचे फैला हुआ है। अक्षर पुरुष कौन है? भारतीय दर्शन में तीन पुरुषों की बात की जाती है: क्षर पुरुष: यह नश्वर जीवात्माएँ हैं, जो शरीर और भौतिक संसार से बंधी हैं। अक्षर पुरुष: यह अविनाशी आत्मा या चेतना है, जो क्षर से ऊपर लेकिन परम पुरुष से नीचे है। यह संसार रूपी वृक्ष का तना है। परम पुरुष (पुरुषोत्तम): यह परमात्मा है, जो इस वृक्ष की जड़ और सर्वोच्च सत्ता है। अक्षर पुरुष को “कूटस्थ” भी कहा जाता है, अर्थात् वह जो स्थिर और अपरिवर्तनशील है। यह वह चेतना है जो न तो जन्म लेती है और न ही मरती है, लेकिन कर्म और माया के प्रभाव से संसार में बंधी हुई प्रतीत होती है। भगवद्गीता के 15वें अध्याय में इसे”अक्षर” के रूप में वर्णशत ककया गया है, जो क्षर (नश्वर) और परुुषोिम (अत्तवनार्ी परम) के बीच की कडी है। अक्षर पुरुष का तना क्यों? संसार रूपी वृक्ष में अक्षर पुरुष को तना इसलिए कहा जाता है क्योंकि: यह जड़ों (परमात्मा) से शक्ति लेकर शाखाओं (भौतिक संसार) को पोषण देता है। यह स्थिरता और संतुलन का प्रतीक है, जो नश्वर और अविनाशी के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाता है। जैसे वृक्ष का तना जड़ों और पत्तियों को जोड़ता है, वैसे ही अक्षर पुरुष आत्मा को परमात्मा और संसार से जोड़ता है। अक्षर पुरुष का लोक या स्थान अक्षर पुरुष का लोक एक आध्यात्मिक अवस्था या क्षेत्र है, जिसे “अक्षर धाम” या “ब्रह्मलोक” के रूप में जाना जाता है। यह न तो पूर्णतः भौतिक है और न ही पूर्णतः परम धाम (पुरुषोत्तम का क्षेत्र)। इसके बारे में निम्नलिखित जानकारी दी जा सकती है: स्थान: यह सतलोक या कैवल्य धाम के नीचे और भौतिक संसार के ऊपर माना जाता है। वेदांत में इसे “हिरण्यगर्भ” या “महत्त्व” का क्षेत्र भी कहा जाता है, जहाँ सूक्ष्म चेतना निवास करती है। यह वह स्थान है जहाँ जीवात्मा माया के बंधनों से मुक्त होकर अपनी शुद्ध अवस्था में रहती है, लेकिन अभी भी परम पुरुष के साथ पूर्ण एकीकरण से दूर है। विशेषताएँ: यहाँ समय और मृत्यु का प्रभाव नहीं होता, लेकिन यह परम शांति का क्षेत्र नहीं है, क्योंकि यहाँ से भी परम धाम की ओर जाना संभव है। यहाँ की चेतना तीन गुणों (सत, रज, तम) से परे है, लेकिन पूर्ण मुक्त नहीं। योगी और साधक इसे ध्यान और समाधि के माध्यम से अनुभव करते हैं। शास्त्रों में उल्लेख भगवद्गीता (15.16-17) में कहा गया है: “द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च। क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते॥” अर्थात, संसार में दो पुरुष हैं – क्षर और अक्षर। क्षर सभी शरीरों में है, और कूटस्थ को अक्षर कहा जाता है उपनिषदों (जैसे मुंडक उपनिषद) में इसे “श्वेताश्वतर” या अत्तवनारी क्षेत्र के रूप में वर्णित किया गया है। अक्षर पुरुष और संसार का संबंध अक्षर पुरुष इस उल्टे वृक्ष का तना होने के कारण संसार के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह वह बिंदु है जहाँ से जीवात्मा अपने कर्मों के अनुसार ऊपर (परमात्मा) या नीचे (संसार) की ओर जाती है। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं: जैसे सूर्य का प्रकाश बादलों से छनकर पृथ्वी पर आता है, वैसे ही परमात्मा की चेतना अक्षर पुरुष के माध्यम से संसार तक पहुँचती है। आध्यात्मिक महत्व इस उल्टे वृक्ष और अक्षर पुरुष को समझने का उद्देश्य जीवन की वास्तविकता को जानना है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस वृक्ष को “वैराग्य रूपी शस्त्र” से काटकर परम धाम की ओर बढ़ना चाहिए। अक्षर पुरुष का लोक एक पड़ाव है, जहाँ से साधक को पुरुषोत्तम की शरण लेनी होती है। निष्कर्ष “उल्टे संसार रूपी वृक्ष” का तना अक्षर पुरुष एक प्रतीक है जो हमें जीवन के दोहरे स्वरूप – नश्वर और अविनाशी – को समझाता है। इसका लोक वह सूक्ष्म क्षेत्र है जहाँ आत्मा अपनी शुद्धता को पहचानती है, लेकिन पूर्ण मुक्त होने के लिए उसे परम पुरुष की ओर बढ़ना पड़ता है। यह अवधारणा हमें यह सिखाती है कि जीवन का लक्ष्य केवल भौतिक सुख नहीं, बल्कि उस मूल स्रोत तक पहुँचना है, जहाँ से यह वृक्ष उत्पन्न हुआ है। क्या आप भी इस वृक्ष के रहस्य को समझकर अपने जीवन को नई दिशा देना चाहते हैं? अपनी राय और विचार हमारे साथ साझा करें!

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जीवन कलश

जीवन कलश एक ऐसा कॉन्टेंट है जो जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करता है और पढ़ने वालों को प्रेरित करता है यह ब्लॉक जीवन को सकारत्मक दिशा में ले जाने के लिए एक मार्ग प्रदान करता है मुख्य विषय जीवन कलश का जीवन कलश ब्लॉग पर कई विषयों पर चर्चा की जाती है जिनमें से कुछ प्रमुख विषय है: *मोटिवेशन और प्रेरणा: मोटिवेशन और प्रेरणा दो ऐसे शब्द है जो हमारे जीवन में सफलता की कुंजी है प्रेरणा हमें अपने लक्ष्यो की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करती है जबकि मोटिवेशन हमें अपने लक्ष्यो को प्राप्त करने के लिए आवश्यक ऊर्जा और उत्साह प्रदान करता है *प्रेरणा और मोटिवेशन के स्रोत प्रेरणा और मोटिवेशन के कई स्रोत हो सकते है जिनमें से कुछ प्रमुख स्रोत है: *आत्मविश्वास: आत्मविश्वास हमें लक्ष्यो की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है *सकारात्मक सोच: सकारात्मक सोच हमें अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करती है *लक्ष्य निर्धारण: लक्षण निर्धारण हमें अपने लक्षण की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है *प्रेरक पुस्तकें: प्रेरक पुस्तक हमें अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करती है *प्रेरक व्यक्ति: सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरक व्यक्ति भी प्रमुख भूमिका निभाता है प्रेरणा और मोटिवेशन के कई लाभ हो सकते है, जिनमे से कुछ प्रमुख फायदे है *सफलता: मोटिवेशन और प्रेरणा हमें अपने लक्ष्यों की और बढ़ाने के लिए प्रेरित करते है जिससे हम सफलता प्राप्त कर सकते है *आत्मविश्वास: आत्मविश्वास को बढ़ाने में प्रेरणा और मोटिवेशन का योगदान होता है *उत्पादकता: मोटिवेशन और प्रेरणा हमे अपने काम में उत्पादकता को बढ़ाने मे मदद करते है आत्म सुधार एक ऐसी  प्रक्रिया है जिसमे हम अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए काम करते है यह एक सतक प्रक्रिया है जिसमें  हम अपने विचारो, भावनाओं और व्यवहार में सुधार करने के लिए प्रयास करते है आत्म सुधार के कई लाभ होते है जिनमें कुछ प्रमुख है *आत्मविश्वास में वृद्धि: आत्म सुधार हमें अपने आत्मविश्वास में वृद्धि करने में मदद करता है *व्यक्तिगत विकास: व्यक्तिगत विकास में आत्म-सुधार हमारे जीवन में परिवर्तन लाता है *संबंधो में सुधार: आत्म सुधार हमें अपने संबंधो में सुधार करने में मदद करता है आत्म सुधार के तरीके: कई तरीके आत्म-सुधार में सहयोग करते है *आत्म-विश्लेषण: आत्म-विश्लेषण हमें अपने विचारों भावनाओ, और व्यव्हार को समझने मे मदद करते है *लक्ष्य निर्धारण: लक्षण निर्धारण हमें अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए एक दिशा प्रदान करता है सकारात्मक सोच: सकारात्मक सोच हमें अपने विचारों में सकर्मकता लाने में मदद करती है *व्यक्तिगत विकास कार्यक्रम: व्यक्तिगत विकास कार्यक्रम हमें अपने व्यक्तिगत विकास में मदद करते है आत्म सुधार के लिए सुझाव * नियमित रूप में आत्मक विशेषण करें-नियमित रूप में आत्मा-विशेषण करने से आप अपने विचारों, भावनाओं और व्यवहार को समझने में मदद कर सकते है *लक्ष्य निर्धारण करे: लक्ष्य निर्धारण करने में आप अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए एक दिशा प्रदान कर सकते है *सकारात्मक सोच का प्राभव करे: सकारात्मक सोच का अभ्यास करने से आप अपने विचारों में सकारात्मक लाने में मदद कर सकते है *व्यक्तिगत विकास कार्यक्रम मे भाग ले: व्यक्तिगत विकास कार्यक्रम में भाग लेने से आप अपने व्यक्तिगत विकास में मदद कर सकते है जीवन के अनुभवो की समझ: जीवन को गहराई से समझने का एक मार्ग  सतत प्रक्रिया है जिसमें हम अपने जीवन के अनुभवों को समझने और उनका उपयोग अपने जीवन में सुधार करने के लिए करते है जीवन के अनुभवों की समझ के लाभ जीवन में अनुभवों की समझ के कई लाभ हो सकते है जिनमें कई प्रमुख है:- *आत्मज्ञान- जीवन के अनुभवों की समझ हमें अपने बारे में अधिक जानने में मदद करती है आत्मज्ञान के उदेश्य की समझ सकर्मक सोच व्यक्तिगत विकास जीवन के अनुभवों की समझ के तरीके जीवन के अनुभव की समझ के कई तरीके हो सकते हैं जिनमें से कुछ प्रमुख तरीके है *ध्यान योग: ध्यान योग हमें अपने जीवन के अनुभवों को समझने में मदद करते है *पुस्तक और लेख: पुस्तक और लेख हमें अपने जीवन के अनुभवों को समझने में मदद करते है

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